Upwas
PANCHKOSH SADHNA – Online Global Class – 30 Oct 2021 (5:00 am to 06:30 am) – Pragyakunj Sasaram _ प्रशिक्षक श्री लाल बिहारी सिंह
ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात् ।
SUBJECT: उपवास
Broadcasting: आ॰ अमन जी/ आ॰ अंकुर जी/ आ॰ नितिन जी
आ॰ डा॰ शिवांगी सिंह जी – MBBS (सुपुत्री – आ॰ उमा सिंह जी)
विज्ञान व अध्यात्म एक दूसरे के विरोधी नहीं प्रत्युत् पूरक हैं ।
जब हम भोजन ग्रहण करते हैं तो पैंक्रियाज इन्सुलिन नामक हार्मोन रिलीज करता है । बारंबार मूंह जूठा करते रहने से इन्सुलिन रिलीज की प्रक्रिया प्रभावित होती है फलस्वरूप डायबीटिज नामक रोग से पीड़ित होने की संभावना बढ़ जाती है । पाचक उपवास से हम इस सिस्टम को सही रख सकते हैं ।
उपवास से मेटाबॉलिज्म रेट सही रहता है ।
उपवास से बैड कोलेस्ट्रॉल की मात्रा को नियंत्रित रख सकते हैं । जिससे हृदयाघात व पक्षाघात आदि से बचा जा सकता है ।
वैज्ञानिक शोध बताते हैं लंबे उपवास (17 घंटे) से कैंसर जैसी बीमारी से बचाव व निदान किया जा सकता है ।
Autoimmune System diseases के निदान में उपवास अत्यंत प्रभावी है ।
Detoxification में उपवास का योगदान महत्वपूर्ण है ।
24 घंटे के उपवास से Neurons count व इनकी connectivity को दुरुस्त रखा जा सकता है । Dopamine and Serotonin की मात्रा संतुलित रखी जा सकती है ।
उपवास से लीवर को चुस्त-दुरुस्त व इसकी कार्यप्रणाली को healthy रखा जा सकता है ।
36 से 48 घंटे के उपवास से ब्रेन के cells को reproduce किया जा सकता है । Metabolic syndrome से ग्रस्त व्यक्ति भी अपना वज़न कम कर सकते हैं ।
Under Supervision of a medical specialist, 3-5 days का उपवास रखकर lifestyle diseases like Diabetes आदि को ठीक किया जा सकता है ।
उपवास के अभ्यास से प्राप्त निजी अनुभव:-
got constant energy level.
got healthy thought process (positivity)
extra weight loss
healthy harmonal system
my aunty Mrs Savita Singh (Panchkosh Sadhika) got her diabetes cured.
आ॰ उमा सिंह जी _ गृहिणी (बैंगलोर, कर्नाटक)
अन्नमयकोश की शुद्धि (उज्जवल) हेतु 4 साधन – आसन, उपवास, तत्त्वशुद्धि व तपश्चर्या ।
अध्यात्मिक चिकित्सक (ऋषि – मुनि) बहुत समय पूर्व में ही उपवास के जरिए “बीमारी को भूखा मारो” का सिद्धांत दे चुके हैं ।
आत्मसाधक – आहार शुद्धि पर अनिवार्य रूप से ध्यान दें । “जैसा अन्न वैसा मन” आहार शुद्धि मन को मैत्रीपूर्ण (नियंत्रित/ संतुलित/ प्रसन्न) बनाए रखने में अहम भूमिका निभाते हैं ।
गीताकार, उपवास को विषय विकारों से निवृत्ति में अहम भूमिका निभाते हैं । “योगश्चित्त वृत्ति निरोधः ।”
उपवास, तत्त्वशुद्धि में भी अप्रतिम भूमिका निभाते हैं । आकाश तत्त्व से संपर्क बढ़ जाता है । फलतः एकाग्रता व सकारात्मकता में आशातीत वृद्धि होती हैं । आयाम (dimensions) बढ़ता जाता है ।
उपवास, उपत्यकाओं के उलझन/ कचड़े (toxins) के शोधन में महत्वपूर्ण भूमिकाएं निभाते हैं ।
उपवास के 5 भेद:-
1. पाचक – पेट के अपच अजीर्ण कोष्ठबद्धता को पचाने हेतु । कड़ी भूख लगने के उपरांत ही भोजन ग्रहण किया जाता है ।
2. शोधक (लंघन) – रोगों को भूखा मारने हेतु । विश्राम आवश्यक । उबालकर पानी पीना एकमात्र आहार ।
3. शामक – कुविचारों, मानसिक विकारों, दुष्प्रवृत्तियों एवं विकृत उपत्यकाओं के शमन हेतु । रसाहार व हल्के (सुपाच्य) आहार पर । एकांत, स्वाध्याय व ईश्वर प्राणिधान को प्राथमिकता ।
4. आनक – विशिष्ट प्रयोजनार्थ दैवीय शक्ति के अनुग्रह हेतु । सूर्य की (सप्तवर्णी) किरणों द्वारा अभीष्ट शक्ति का आह्वान। सप्तवर्णी किरणों में सात ग्रह (except राहु व केतु) की राशियां सम्मिलित होती हैं :-
(क) सूर्य – तेजस्विता, उष्णता व पित्त प्रकृति प्रधान ।
(ख) चन्द्रमा – शीतल, शान्तिदायक, उज्जवल व कीर्तिकारक ।
(ग) मंगल – कठोर, बलवान व संहारक ।
(घ) बुध – सौम्य, शिष्ट, कफ प्रधान, सुन्दर व आकर्षक ।
(डं) गुरू – विद्या, बुद्धि धन, सुक्ष्म दर्शिता, शासक – न्याय राज्य का अधिष्ठाता ।
(च) शुक्र – वात प्रधान, चंचल, उत्पादक, कूटनीतिक ।
(छ) शनि – स्थिरता, स्थूलता सुखोपभोग दृढ़ता परिपुष्टता का प्रतीक ।
आवश्यकतानुसार गुणों को ग्रहण करने हेतु तदनुरूप दैवीय शक्तियों को आकर्षित करने हेतु सप्ताह के दिनों का चुनाव किया जा सकता है :-
रविवार – श्वेत रंग व गाय का दूध दही आहार उचित ।
सोमवार – पीला रंग व चावल का माड़ उपयुक्त ।
मंगलवार – लाल रंग व भैंस के दूध-दही ।
बुधवार – नीला रंग व खट्टे मीठे फल ।
गुरू – नारंगी रंग मीठे फल ।
शुक्र – हरा रंग, बकड़ी का दूध दही गुड़ का उपयोग ।
5. पावक – पापों के प्रायश्चित व आत्म पवित्रता हेतु । चांद्रायण व्रत।
उपवास के दौरान 5 अनिवार्य नियम:-
1. कठिन शारीरिक/ मानसिक श्रम से परहेज़ करें एवं यथासंभव विश्राम करें ।
2. घूंट घूंट पानी पीते रहें ।
3. आवश्यकतानुसार रसाहार/ फलाहार/ सुपाच्य शाक सब्जी लिया जा सकता है । गरिष्ठ भोजन अथवा मिठाईयों से बचा जाए ।
4. स्वाध्याय (अध्ययन + आत्मचिंतन – मनन – मंथन), सत्संग व ईश्वर प्राणिधान में विशेष रूप से समय लगावें ।
उपवास संग पंचकोशी क्रियायोग APMB की भूमिका अहम है ।
श्रद्धा (विश्वास/ ईमानदारी), प्रज्ञा (समझदारी) व निष्ठा (जिम्मेदारी व बहादुरी/ नियमितता) से साधना (अभ्यास) को नित नए आयाम (सफलता) संग लक्ष्य संधान (आत्म-परमात्म बोध) किया जा सकता है ।
जिज्ञासा समाधान (श्री लाल बिहारी सिंह ‘बाबूजी’)
आ॰ उमा दीदी व डाक्टर शिवांगी जी को साभार सस्नेह प्रेम ।
आत्मसाधक – प्राणमयकोश में उपवास से प्राप्त ऊर्जा को प्राण के आकर्षण, संवर्धन, संरक्षण (निरोध) व नियोजन (सदुपयोग) में लावें ।
मनोमयकोश में उपवास (तन्मात्रा साधना) से मन को मैत्रीपूर्ण बनावें ।
विज्ञानमयकोश में उपवास से संकीर्णताओं/ मान्यताओं आदि से निवृत हुआ जाए ।
आनंदमयकोश में उपवास – “उपासना, साधना, अराधना” अर्थात् ईश्वरीय गुणों (आदर्शों) को जीने (रचाने – पचाने – बसाने) में लगाया जाए ।
पाचक उपवास से सभी वर्ग (आर्त, अर्थी, चिंतित व भोगी) लाभान्वित हो सकते हैं । यह उपवास साधक का upgradation करते हुए (ऋषि, मुनि यति तपस्वी योगी) की श्रेणी में लाकर लंबे उपवास (पावक) तक की शक्ति प्रदान करते हैं ।
उपवास को केवल स्थूल आहार से दूरी (भूखा रहने) के सीमित अर्थ तक ही सीमित ना रखा जाए ।
प्राणमयकोश में प्राण के क्षरण को रोकना – उपवास ।
मनोमयकोश में विषयों से निवृत्ति (निष्काम/ अनासक्त भाव) – उपवास ।
विज्ञानमयकोश में में संकीर्णता/ मान्यताओं से निवृत्ति (ग्रन्थि भेदन) – उपवास ।
आनंदमयकोश में भक्ति (अराधना/ ईश्वर प्राणिधान/ आदर्शों से प्रेम) – उपवास ।
आवश्यकतानुसार अर्थात् संतुलित आहार (पंचतत्त्व – पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु व आकाश) उपवास अंतर्गत हैं । असंतुलन (अति व अभाव) अर्थात् misuse & overuse दोनों से बचा जाता है व संतुलन ( good use) का माध्यम बना जाए ।
उपवास में उन आहारों से परहेज़ करना होता है जो हमारे अस्वस्थता को बढ़ाते हैं । और उन्हें ग्रहण करना होता है जो स्वस्थ रखने में सहायक हों । अतः प्रारंभिक अवस्था साधक को अपने व्यक्तित्व (गुण, कर्म व स्वभाव) के अनुसार उपवास (5 types) का चुनाव करें । जैसे जैसे व्यक्तित्व परिष्कृत होता जायेगा वैसे वैसे उत्तरोत्तर आयाम (उच्चस्तरीय कक्षाओं में) प्रवेश मिलता जायेगा ।
आहार अनुरूप सात्विक, तामसिक व राजसी गुणों में अभिवृद्धि होती है । अतः लक्ष्य अनुरूप आहार को प्राथमिकता दी जाती है ।
ॐ शांतिः शांतिः शांतिः ।।
Writer: Vishnu Anand
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