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Vaishnavachar – Introduction

Vaishnavachar – Introduction

वैष्णवाचार – परिचय (तांत्रिक आचार – द्वितीय चरण)

Aatmanusandhan –  Online Global Class – 09 अक्टूबर 2022 (5:00 am to 06:30 am) –  Pragyakunj Sasaram _ प्रशिक्षक श्री लाल बिहारी सिंह

ॐ भूर्भुवः स्‍वः तत्‍सवितुर्वरेण्‍यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्‌

SUBJECTवैष्णवाचार – परिचय (तांत्रिक आचार – द्वितीय चरण)

Broadcasting: आ॰ अंकूर जी/ आ॰ अमन जी/ आ॰ नितिन जी

शिक्षक: श्रद्धेय श्री लाल बिहारी सिंह @ बाबूजी (प्रज्ञाकुंज, सासाराम, बिहार)

पंचकोश साधक पर परिपक्वता उपरांत (आत्मसाधना) आत्मानुसंधान में प्रवेश करें ।

जीवन के 3 महान उद्देश्य:-
1. आत्मकल्याणाय
2. लोककल्याणाय
3. वातावरण परिष्कराय

जीवन देवता की आराधना और उपलब्धि– http://literature.awgp.org/akhandjyoti/1981/November/v2.31

लोककल्याण में हमें तीन ऋण से मुक्त होना होता है:-
1. देव ऋण,
2. ऋषि ऋण और
3. पितृ ऋण
ऋण से सच्ची मुक्ति – http://literature.awgp.org/akhandjyoti/1942/June/v2.17

प्राचीन भारत का ज्ञान (आत्मिकी) एवं विज्ञान (तंत्र विज्ञान) इतना समुन्नत था कि वह जगतगुरुसोने की चीड़ियाँ के रूप में जाना जाता था ।

आज हम ऋषि आत्माओं की यह नैतिक सांस्कृतिक जिम्मेदारी है कि तंत्र विज्ञान के उसी परिष्कृत समुन्नत स्वरूप को सर्वथा कल्याण भावेण विश्व समुदाय के समक्ष रखा जाए ।

संकीर्ण प्रेम (स्वार्थपरता @ आत्मविस्मृति) तीन स्वरूप में परिलक्षित होता है:-
1. लोभ
2. मोह
3. अहंकार
इन तीनों की पूर्ति ना होने पर क्रोध उत्पन्न होता है; जिससे भ्रम की स्थिति उत्पन्न (विवेक बुद्धि नाश) होती है ।

वेदाचार में परिपक्वता उपरांत वैष्णवाचार में प्रवेश मिलता है ।
वैष्णवाचार के साधक को (ईश्वर) विष्णु के गुणों:-
ईश्वर सर्वव्यापी (जड़ चेतना यत्र तत्र सर्वत्र) 
वामन अवतार _ विराट विष्णु दर्शन (अणोरणीयान् महतो महीयान्)
शेषशैय्या (विष्णु का आधार अनन्त)
नाभि से कमल उत्पन्न; कमल से ब्रह्मा आविर्भूत; तप से ब्रह्मा में सृजन शक्ति सामर्थ्य (तप से सृजन, शक्ति का विकास)
यज्ञो वै विष्णुः
चतुर्भुज (चार वेद)
चक्र (संसार की गतिशीलता/ चरैवेति चरैवेति)
वाहन गरूड़ (गरूड़ – तीनों वेद)
वर्ण श्याम/ काला (काला रंग पर अन्य रंग नहीं चढ़ता अर्थात् अपरिवर्तनशील चैतन्य सत्ता)
हाथ में कमल (संसार रूपी भवसागर में कमल की तरह निर्लिप्तता)
वैजयंती माला (पंचमहाभूत)
यज्ञोपवीत (प्रणव)
सारंग धनुष (अहंकार)
आयुध (पंच ज्ञानेन्द्रियां)
खड्ग (अविद्यामयकोश से आच्छादित विद्यामय ज्ञान)
गंगा त्रिपथगामिनी (ज्ञान, कर्म व भक्ति) …….
का (जप) संस्मरण मनन चिंतन निदिध्यासन व तदनुसार आचरण करना होता है ।

जिज्ञासा समाधान

(देववाणी) संस्कृत भाषा, ऋषियों द्वारा चैतन्य रूपेण सुनी गई हैं (श्रुति) ।

विस्तार/ रूपांतरण करें – सायुज्यता हेतु (समर्पण – विलयन – विसर्जन) । भाव, (विषयों में) आसक्त हो तो बन्धनकारी और अनासक्त (आत्मीयता @ निः स्वार्थ प्रेम) हो तो मोक्षकारी । (विषयासक्त) भोग बुद्वि का रूपांतरण योग बुद्धि में करें ।

विष्णु गायत्री मंत्र – ॐ नारायण विद्महे वासुदेवाय धीमहि तन्नो विष्णु: प्रचोदयात्

कमल अर्थात् निर्लिप्तता/ अनासक्त/ निष्काम/ निःस्वार्थ …. ।

सहस्रनाम …. अर्थात् ईश्वर की अनन्तता/ सर्वव्यापकता; जप – अर्थात् संस्मरण चिंतन मनन निदिध्यासन (समर्पण – विलयन – विसर्जन) ।

प्राणमयकोश जागरण हेतु तीन साधन/ उपाय/ क्रियायोग :-
1. प्राणायाम
2. बन्ध
3. मुद्रा
सिद्धि – ओजस्वी तेजस्वी यशस्वी ।

देवी मां का एक नाम विकृति उनकी सर्वव्यापी दर्शन हेतु है । नमन (श्रद्धा) से प्रेम/ सदुपयोग का मार्ग प्रशस्त होता है । उदाहरणार्थ Waste management में हम compost (खाद) का निर्माण कर फसलों की पैदावार बढ़ा लेते हैं । विकृति नमन अर्थात् nothing is worthless in the world.

ॐ  शांतिः शांतिः शांतिः ।।

सार-संक्षेपक: विष्णु आनन्द

 

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