Vedachar – 2
Aatmanusandhan – Online Global Class – 24 July 2022 (5:00 am to 06:30 am) – Pragyakunj Sasaram _ प्रशिक्षक श्री लाल बिहारी सिंह
ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात् ।
SUBJECT: वेदाचार-2
Broadcasting: आ॰ अंकूर जी/ आ॰ अमन जी/ आ॰ नितिन जी
शिक्षक: श्रद्धेय श्री लाल बिहारी सिंह @ बाबूजी (प्रज्ञाकुंज, सासाराम, बिहार)
‘आत्मानुशासन‘ में ‘वेदाचार’ की भूमिका:-
‘वेद‘ शब्द का अर्थ ज्ञान होता है । ज्ञानवान व्यक्ति जीवित हैं । अनुभूति जन्य ज्ञान (बोधत्व) सर्वश्रेष्ठ है ।
‘वैदिकी‘ का अर्थ होता है वेद विज्ञान अथवा वेद विहित अनुशासन । इसके अनुशासन में हमारा अंतरंग परिष्कृत व बहिरंग व्यवस्थित होता है फलस्वरूप हम ‘संसार’ में जीने की ‘कला’ सिखते हैं । सांसारिक थपेड़ों में लहुलुहान (त्रिताप से ग्रसित) नहीं होते हैं ।
‘अनन्ता वै वेदाः ।” @ “नेति नेति (न इति न इति) ।” अतः हमें research process जारी रखनी चाहिए ।
Theory, Practical का युग्म है दोनों एक दूसरे से जुड़े हैं । एकांगी से बात नहीं बनती है । दोनों के साथ चलने से results मिलते हैं जिनका जीवन में application किया जाता है । तथ्यों का अध्ययन (approached) उनको धारण करने हेतु अभ्यास (digested) एवं उपलब्धियों से आत्मकल्याण व लोककल्याण (application) संभव बन पड़ता है (realised) । त्रिपदा गायत्री @ “ज्ञानयोग + कर्मयोग + भक्तियोग ।” @ “उपासना + साधना + अराधना ।”
तत्त्ववित्तु महाबाहो गुणकर्मविभागयोः । गुणा गुणेषु वर्तन्त इति मत्वा न सज्जते ॥ 3.28 ॥ भावार्थ: परंतु हे महाबाहो ! गुण-कर्म-विभाग के तत्त्व को जानने वाला, “सभी गुण ही गुणों में बरतते हैं” ऐसा समझकर आसक्त नहीं होता ।
सोहमस्मि इति बृत्ति अखंडा । दीप सिखा सोइ परम प्रचंडा ॥ आतम अनुभव सुख सुप्रकासा। तब भव मूल भेद भ्रम नासा ॥1॥ भावार्थ: ‘सोऽहमस्मि’ यह जो अखंड वृत्ति है, वही परम प्रचंड दीपशिखा है । जब आत्मानुभव के सुख का सुंदर प्रकाश फैलता है, तब संसार के मूल भेद रूपी भ्रम का नाश हो जाता है ॥
(चार वेद की मात पुनीता) ‘वेद‘ (ज्ञान और विज्ञान का अनादि भंडार) :-
1. ॐ भूर्भुवः स्वः – ऋगवेद
2. तत्सवितुर्वरेण्यं – यजुर्वेद
3. भर्गो देवस्य धीमहि – सामवेद
4. धियो यो नः प्रचोदयात् – अथर्ववेद
गायत्री का अर्थ व संदेश – http://literature.awgp.org/book/gayatri_ka_arth_aur_sandesh/v1.2
जिज्ञासा समाधान
‘क्रियायोग‘ की सिद्धि में नियमितता, सहजता, सजगता, योग्यता, मनोयोग आदि महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं ।
अचेतन मन में दबी ग्रन्थियां/ कुसंस्कार (वासना जनित मोह + तृष्णा जनित लोभ + अहंता जनित अहंकार) आत्मसुधार, आत्मनिर्माण व आत्मविकास में बाधक होते हैं । इनके बेधन/ रूपांतरण हेतु स्वाध्याय, तन्मात्रा साधना व ध्यानात्मक यौगिक अभ्यास प्रभावी हैं ।
वेद मंत्र के गहराई में जाने की आवश्यकता है (अनन्ता वै वेदाः) । ऋषियों ने आत्मचेतना को ब्राह्मी चेतना से जोड़कर वेद मन्त्र की आत्मानुभूति कर द्रष्टा बनें । ये सर्वथा कल्याणकारी हैं । Steps: approached – digested – realised.
‘श्रम‘ (क्रिया) उबाऊ बनने के दो मूलभूत कारण:-
1. योग्यता का अभाव (lacking of knowledge)
2. मनोयोग का अभाव (lacking of interest)
“क्रियायोग = योग्यता + श्रम + मनोयोग @ “श्रद्धा + प्रज्ञा + निष्ठा” ।” इस त्रिवेणी संगम में डुबकी लगाने से अनंत आयामों की यात्रा की जा सकती है । लकीर के फकीर बनने से बात नहीं बनती है ।
इन्द्रिय संयम में जीभ व जननांग पर नियंत्रण महत्वपूर्ण है ।
ॐ शांतिः शांतिः शांतिः।।
Writer: Vishnu Anand
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