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Yagya Vigyan – 1

Yagya Vigyan – 1

PANCHKOSH SADHNA – Online Global Class – 06 Feb 2021 (5:00 am to 06:30 am) –  Pragyakunj Sasaram _ प्रशिक्षक श्री लाल बिहारी सिंह

ॐ भूर्भुवः स्‍वः तत्‍सवितुर्वरेण्‍यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्‌|

Please refer to the video uploaded on youtube.

SUBJECT: यज्ञ विज्ञान – 1

Broadcasting: आ॰ अमन जी

आ॰ डॉ॰ ममता सक्सेना जी .

वांग्मय संख्या 26 – यज्ञ एक समग्र उपचार प्रक्रिया – यज्ञ एवं यज्ञोपैथी। ‘यज्ञ’ की पूर्णता निम्नांकित 4 तत्त्वों के समावेश/ समन्वय पर निर्भर करती हैं:-
१. मंत्र सिद्धि – शब्द ब्रह्म/ गायत्री मंत्र की ध्वनि शक्ति,
२. यज्ञाग्नि – हविष्य (वनौषधि, घृत, समिधाएं, फल – मिष्ठान्न आदि)
३. यज्ञ कर्ता का व्यक्तित्व – उत्कृष्ट चिंतन (उपासना), आदर्शवादी चरित्र (साधना) व शालीन व्यवहार (अराधना) का धारक।
४. श्रद्धा व निष्ठा – भावे विद्यते देवा। भवानी शंकरौ वन्दे, श्रद्धा विश्वास रूपिणौ।

हम जैसा विचार करते हैं वैसे विचार ही हमारे पास खींचें चले आते हैं जिसके विज्ञान को विचार चुंबकत्व से समझा जा सकता है। हम जैसा सोचते हैं, वैसा करते हैं और जैसा करते हैं, वैसे ही बन जाते हैं। अतः यज्ञ में प्राण – संकल्प शक्ति, श्रद्धा, प्रज्ञा व निष्ठा आदि से आते हैं।

यज्ञाग्नि‘ को पुरोहित भी कहा जाता है जो भौतिक ऊर्जा व प्राण ऊर्जा के समन्वय से उत्पन्न होती हैं। यज्ञ द्वारा प्राणाग्नि व योगाग्नि उत्पन्न की जाती हैं। सामान्य अग्नि का प्रभाव भौतिक जगत/ दृश्य जगत/ स्थूल शरीर तक है जबकि यज्ञाग्नि का प्रभाव चेतनात्मक स्तर तक है। अग्नि तत्त्व के ३ प्रकार हैं – पावक, पावमान व शुचि।

यज्ञीय ऊर्जा के 3 आधार – १. मंत्र की शब्द शक्ति, २. यज्ञ-कर्ता का व्यक्तित्व व ३. यज्ञीय अग्नि स्रोत।

यज्ञ का उद्देश्य. दुष्प्रवृत्ति उन्मूलनाय, सत्प्रवृत्ति संवर्द्धनाय, आत्मकल्याणाय,  लोककल्याणाय, वातावरण परिष्कराये।

‘यज्ञ’ का युगानुकुल स्वरूप आज के शोधार्थियों का विषय होना चाहिए। ताकि सर्वसाधारण हेतु इसे सर्वसुलभ सर्वमान्य बनाया जा सके।

आ॰ दीदी ने यज्ञ से विभिन्न रोगों (Diabetes, Hypertension, Digestive Disorder, Arthritis, Cardiac Disorders etc) के निदान में यज्ञ के प्रभावों पर आंकड़े प्रस्तुत किया है।

भेषज यज्ञ द्वारा यज्ञोपैथी उपचार –  हवन + जप + APMB +  आहार-विहार संयम के समन्वय से शारीरिक व मानसिक रोगों का निदान।

‘यज्ञ’ का मानवीय जैविक ऊर्जा पर प्रभाव के यंत्र मापित आंकड़े प्रस्तुत किए गए हैं।

गृहे गृहे यज्ञ – वृहद स्तर पर किये गये बाह्य प्रयोग के आंकड़े दिए गए हैं।

Pollution due to Radiation – मोबाइल, टेलीविजन, लैपटॉप, कंप्यूटर, माइक्रोवेव आदि के प्रयोग से कैंसर जैसे रोग से ग्रस्त होने की संभावना बढ़ जाती हैं। नियमित यज्ञ के प्रभाव से Radiation के दुष्प्रभाव को शुन्य किया जा सकता है। आ॰ दीदी ने इसके समर्थन में प्रमाणित आंकड़े प्रस्तुत किए हैं।

प्रश्नोत्तरी सेशन

यज्ञ‘ की विधा को समझने हेतु गुरूदेव रचित वांग्मय संख्या 26 (यज्ञ एक समग्र उपचार प्रक्रिया) का अध्ययन करें। यज्ञ के संपूर्ण लाभ हेतु – अग्निहोत्र संग यज्ञ के प्राण – ‘भावना’ (श्रद्धा + निष्ठा) का समावेश आवश्यक हैं। www.yagopathy.com पर नियमित रूप से शोध प्रकाशित किए जाते हैं। उसे पढ़ा जा सकता है और आपके दैनंदिन जीवन में इसके क्या प्रभाव पड़ते हैं उसे साझा किया जा सकता है।

अग्निहोत्र‘ के दौरान बरती जाने वाली मुख्य सावधानियां:-
१. समिधा – लकड़ी पतली व सुखी हों। इस पर मिट्टी, व फंगस ना हों। हवन सामग्री भी घुनी ना हों।
२. धुम्ररहित यज्ञ – धूआं कम से कम हो। उजला धुआं केवल हवन सामग्री का हो। काला धुआं प्रदुषण का परिचायक हैं।
बलिवैश्व यज्ञ में भावनाओं (कृतज्ञता) का पक्ष अहम हैं। यज्ञ का प्राण/ चेतना – श्रद्धा, प्रज्ञा व निष्ठा हैं।

✍ यज्ञ पिता व गायत्री माता

प्रश्नोत्तरी सेशन विद् श्रद्धेय लाल बिहारी बाबूजी

आ॰ दीदी का बहुत बहुत आभार। दीदी की प्रखर प्रज्ञा व सजल श्रद्धा से संपूर्ण राष्ट्र को लाभ मिलेगा।

कुण्डलिनी जागरण, सुषुम्ना में होता है। अतः कर्म सकाम हों तो कुण्डलिनी जागरण संभव नहीं बन पड़ता है। जब निष्काम भाव से कर्म किये जाते हैं तो वो ‘यज्ञ’ बन जाते हैं। सूर्य, चंद्र, तारे, ग्रह, नक्षत्र, वृक्ष, पौधे वनस्पतियां आदि निष्काम भाव से यज्ञ करते हैं।

ॐ  शांतिः शांतिः शांतिः।।

Writer: Vishnu Anand

 

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