Yajna Science
PANCHKOSH SADHNA – Online Global Class – 8th Jan 2022 (5:00 am to 06:30 am) – Pragyakunj Sasaram _ प्रशिक्षक श्री लाल बिहारी सिंह
ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात् ।
SUBJECT: यज्ञ विज्ञान
Broadcasting: आ॰ अमन जी/ आ॰ अंकुर जी/ आ॰ नितिन जी
आ॰ डा॰ ममता सक्सैना जी (नई दिल्ली)
PPT presentation on “यज्ञ में मंत्र शक्ति का महत्व”
यज्ञ की आत्मा – मंत्र शक्ति ।
मंत्र शक्ति @ वाक् शक्ति @ वाणी । वाणी के ४ प्रकार:-
1. वैखरी (शब्द)
2. मध्यमा (भाव)
3. परा (विचार)
4. पश्यन्ती (संकल्प)
‘मीमांसा दर्शन’ के अनुसार ‘मंत्र’ की 4 शक्तियां:-
1. प्रामाण्य शक्ति
2. फल प्रदान शक्ति
3. बहुलीकरण शक्ति
4. आयातयामता शक्ति (धारण शक्ति)
‘मांत्रिक‘ का तपस्वी (संयमी) होना नितांत आवश्यक है । ‘तप’ से वाणी (शब्द, भाव, विचार व संकल्प) परिष्कृत होती है । परिष्कृत वाणी से यज्ञ-शक्ति का ‘आकर्षण, संधारण व विनियोग’ सिद्ध (सफल) होता है । 4 युगानुकुल संयम:-
1. इन्द्रिय संयम
2. समय संयम
3. विचार संयम
4. अर्थ संयम
“यज्ञ शक्ति = मंत्र ध्वनि शक्ति + ताप शक्ति ।”
PPT presentation on:-
1. इलेक्ट्रो-मैग्नेटिक रेडिएशन के दुष्प्रभाव & यज्ञ (हवन) से निदान ।
2. यज्ञ द्वारा मानवीय ऊर्जा का संवर्धन व संतुलन ।
पंचकोशीय यज्ञ (पंचाग्नि विद्या) में ‘मंत्र-साधना’ के अनुप्रयोग:-
1. अन्नमयकोश – तत्त्वशुद्धि (आकाश तत्त्व) ।
2. प्राणमयकोश – सोऽहं प्राणायाम (हंसयोग) ।
3.मनोमयकोश – ‘जप, शब्द-त्राटक (स्वाध्याय), तन्मात्रा साधना (आकाश की तन्मात्रा – शब्द)’ ।
4. विज्ञानमयकोश – ‘सोऽहं साधना’ ।
5. आनंदमयकोश – ‘नाद साधना’ ।
जिज्ञासा समाधान (डा॰ ममता सक्सैना जी)
‘यज्ञ’ विशुद्ध रूप से वैज्ञानिक – आध्यात्मिक विधा है । यज्ञ सकाम व निष्काम दोनों हो सकते हैं। जिन प्रयोजनार्थ ‘यज्ञ’ किया जाता है, पात्रतानुसार तदनुरूप लाभ मिलते हैं ।
प्रत्यक्ष से कई गुणा शक्ति अप्रत्यक्ष (सुक्ष्म) में होती है । अतः मंत्र की शब्द-शक्ति (ध्वनि ऊर्जा) को भाव शुद्धि से कई गुणा बढ़ाया जा सकता है ।
Something is better than nothing. अतः श्रद्धापूर्वक नियमित सुक्ष्म प्रयास सार्थक परिणाम परिलक्षित करते हैं ।
जिज्ञासा समाधान (श्री लाल बिहारी सिंह ‘बाबूजी’)
हमारी सरस्वती – वाक् शक्ति (वाणी – शब्द, भाव, विचार व संकल्प), ‘तप’ से परिष्कृत अर्थात् आकर्षित व संवर्धित होते हैं और उनके विनियोग (applications) का आयाम बढ़ता है । तपस्वी – ‘चरित्र, चिंतन व व्यवहार’ के धनी होते हैं:-
1. चिंतन – उत्कृष्ट ।
2. चरित्र – आदर्श ।
3. व्यवहार – शालीन ।
हविष्य रूपेण प्रयुक्त होने वाली नवग्रह लकड़ियां:-
1. सूर्य की समिधा – मदार की,
2. चन्द्रमा की समिधा – पलाश की,
3. मंगल की समिधा – खैर की,
4. बुध की समिधा – चिड़चिडा की,
5. बृहस्पति की समिधा – पीपल की,
6. शुक्र की समिधा – गूलर की,
7. शनि की समिधा – शमी की,
8. राहु की समिधा – दूर्वा की एवं
9. केतु की समिधा – कुशा की कही गई हैं।
आम की लकड़ियां सुगमता से उपलब्ध हैं । यज्ञ की समिधा के रूप में इनका इस्तेमाल कर सकते हैं ।
Herbal plants का समिधा रूपेण प्रयोग यज्ञ चिकित्सा में किया जाता है ।
“क्रिया + भावना = क्रियायोग” ।
ॐ शांतिः शांतिः शांतिः ।।
Writer: Vishnu Anand
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ॐ