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Yog Darshan (योग दर्शन) – 1

Yog Darshan (योग दर्शन) – 1

🌕 PANCHKOSH SADHNA ~ Online Global Class – 09 Aug 2020 (5:00 am to 06:30 am) – Pragyakunj Sasaram – प्रशिक्षक Shri Lal Bihari Singh @ बाबूजी

🙏ॐ भूर्भुवः स्‍वः तत्‍सवितुर्वरेण्‍यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्‌|

📽 Please refer to the video uploaded on youtube.

📔 sᴜʙᴊᴇᴄᴛ. योग दर्शन – 1 (समाधि पाद)

📡 Broadcasting. आ॰ अमन कुमार/आ॰ अंकुर सक्सेना जी

🌞 आ॰ श्री लोकेश चौधरी जी (प्रतापगढ़, राजस्थान)

🌸 संस्कृत भाषा में समृद्ध व्याकरण के साथ ही साथ अभिव्यक्ति की विविध क्षमतायें होती हैं। संस्कृत शब्द का अर्थ है – शुद्ध, परिष्कृत, परिमार्जित।

🌸 सुत्र में गुढ़ से गुढ़ बातें संक्षेप में स्पष्टता से कही जाती है। संक्षिप्त रहने से सुत्रों को याद करने में सुविधा होती है। अतः हमारे ऋषियों ने आध्यात्मिक/ वैज्ञानिक तथ्यों को ग्रन्थों में सुत्रबद्ध किया।

🌸 पंच ज्ञानेन्द्रिय + पंच कर्मेन्द्रिय और इनकी संचालक ग्याहरवीं इन्द्रिय मन। मन से परे बुद्धि और बुद्धि से परे आत्मा

🌞 श्री लाल बिहारी सिंह @ बाबूजी

🙏 सांख्ययोगौ पृथग्बाला: प्रवदन्ति न पण्डिता:। – सांख्य दर्शन व योग दर्शन भिन्न नहीं वरन् एक दूसरे के पूरक हैं।

🙏 अथ योगानुशासनं ।।१।।
एक निश्चित अनुशासन का पालन करके साधक आत्म बोध तत्त्व के अधिकारी बन सकेंगे।

🙏 योगश्चित्त वृत्ति निरोधः।।२।।चित्त वृत्तियों का निरोध योग है।

🙏 वृत्तयः पञ्चतय्यः क्लिष्टाऽक्लिष्टाः ।।५।।
पांच तरह की क्लिष्ट (दुःख की उत्पादक) और अक्लिष्ट (दुःख की नाशक) वृत्तियां हैं।

🙏 प्रमाणविपर्ययविकल्पनिद्रास्मृतयः।।६।।
योग शास्त्र में प्रमाण (सत्व ज्ञान), विपर्यय (विपरीत ज्ञान), विकल्प (मन की कल्पना), निद्रा एवं स्मृति (ये पांच वृत्तियां हैं)।
विपर्यय से मुक्ति हेतु गुरुदेव रचित पुस्तक तत्त्व दृष्टि से बंधन मुक्ति स्वाध्याय करें।

🙏 अभ्यासवैराग्यभ्यां तन्निरोधः ।।१२।।
चित्त वृत्तियों का निरोध अभ्यास और वैराग्य से होता है।
गीताकार कहते हैं “अभ्यासेन तु कौन्तेय वैराग्येण च गुह्यते”।

🙏 ईश्वरप्राणनिधानाद्वा ।। २३ ।।
ईश्वर उपासना से निर्बीज समाधि की प्राप्ति होती है।

🙏 यथाभिमतध्यानाद्वा ।। ३१ ।।
जिसका जैसा अभिमत हो वैसा ध्यान करने से मन स्थिर होता है।
अर्थात् आप अपनी सहजता अनुरूप ध्यान का चुनाव कर सकते हैं।

🙏 ऋतम्भरा तत्र प्रज्ञा ।। ४८।।
ऋतंभरा प्रज्ञा अर्थात् शाश्वत ज्ञान @ बोधत्व से ही मुक्ति मिलती है।

🙏 अभाव प्रत्यय (प्रतिकूलता) में हम मस्त (अनुकूल) रहें तो हमने वृत्तियों का निरोध कर लिया है।

🌞 Q & A with Shri Lal Bihari Singh 💐

🙏 अभाव में मस्त रहने हेतु:-
👉 अपनी आवश्यकताओं को कम करें।
👉 सादा जीवन उच्च विचार।
👉 हर हाल मस्त रहें अर्थात् आत्म सत्ता का पदार्थ जगत पर नियंत्रण हो।

🙏 आलस्य/ प्रमाद से छुटकारा पाने हेतु मन पर विवेक का अंकुश लगावें। मन के स्वांग को पहचान कर उसे विवेक का अनुगामी बनाना होता है।

🙏 तीव्रसंवेगानामसन्नः ।। २१ ।।
तीव्र गति / श्रद्धावान समर्पित एक निष्ठ/ जुनूनी स्तर के साधक लक्ष्य का संधान जल्दी करते हैं।

🙏 आत्मा की आत्मा परमात्मा हैं। सविता सभी सूर्यों का प्रसव करती हैं।
अहंकार को गलाने की प्रक्रिया अर्थात् सत्व, रज और तम ग्रंथियों का भेदन करना होता है।
अहंकार शुन्यता ही परमात्मा से सायुज्यता बढ़ाती हैं।

🙏 विषयवती वा प्रवृतिरूतपन्नाः मनसः स्थितिनिबन्धनी ।। ३५ ।।
प्रज्ञा बुद्धि युक्त मनुष्य के लिए विषय भी मन को स्थिर करने का माध्यम बनते हैं।
विवेक युक्त कर्म बन्धन कारक नहीं होते हैं।

🙏 सहज आनंदमय अवस्था को समाधि कहते हैं। यह विषयों (तन्मात्राओं) से प्रभावित नहीं होता है।
मन को शांत रखने के ४ साधन – मैत्री, करूणा, मुदिता व उपेक्षा।
सुखी से मैत्री भाव, दुःखी से करूणा, पुण्यात्मा/ समत्व से मुदिता और पापी प्रवृति की उपेक्षा की जा सकती है।

🙏 ॐ शांतिः शांतिः शांतिः।।

🙏Writer: Vishnu Anand 🕉

 

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