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Yoga Vigyan and Tantra Shashtra

Yoga Vigyan and Tantra Shashtra

योग विज्ञान एवं तंत्र शास्त्र एक ही वृक्ष के दो शाखाएं

Aatmanusandhan –  Online Global Class – 06 नवंबर 2022 (5:00 am to 06:30 am) –  Pragyakunj Sasaram _ प्रशिक्षक श्री लाल बिहारी सिंह

ॐ भूर्भुवः स्‍वः तत्‍सवितुर्वरेण्‍यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्‌

विषय: योग विज्ञान एवं तंत्र शास्त्र एक ही वृक्ष के दो शाखाएं

Broadcasting: आ॰ अंकूर जी/ आ॰ अमन जी/ आ॰ नितिन जी

शिक्षक: श्रद्धेय श्री लाल बिहारी सिंह @ बाबूजी (प्रज्ञाकुंज, सासाराम, बिहार)

http://literature.awgp.org/book/savitri_vigyan_aur_tantra_sadhna/v1.23

http://literature.awgp.org/akhandjyoti/1984/May/v2.15

विज्ञानमयकोश में प्रवेश करने के उपरांत निम्नांकित साधनाओं में प्रगति बनती हैं :-
1. तंत्र साधना
2. कुण्डलिनी जागरण
3. अध्यात्मिक काम साधना

मनुष्यता धारण करने हेतु अर्थात् मानव के 3 आवश्यक/ अनिवार्य गुण :-
1. ज्ञान (उत्कृष्ट चिंतन) @ प्रज्ञा
2. कर्म (आदर्श चरित्र) @ निष्ठा
3. भक्ति (शालीन व्यवहार/ सेवा) @ श्रद्धा ।
जिस हेतु हम त्रिपदा गायत्री की:-
1. उपासना (approached) @ ज्ञानयोग
2. साधना (digested) @ कर्मयोग
3. आराधना (realised) @ भक्तियोग
करते हैं ।

गायत्री की 2 उच्च स्तरीय साधनाएं :-
1. पंचकोश साधना
2. कुण्डलिनी जागरण

साधनात्मक (स्तुता मया वरदा वेदमाता प्रोच्दयन्ताम् द्विजानाम !)  लाभ/ वरदान/ अनुदान (आयुः प्राणं प्रजां पशुं कीर्ति द्रविणं ब्रह्मवर्चसं मह्यं दत्त्वा व्रजत ब्रह्मलोकम):-
1. आयु (आरोग्य @ संयमित/ जीवन मुक्त)
2. प्राण (शक्ति)
3. प्रजां (जन बल)
4. पशुं (संसाधन)
5. कीर्ति (यश)
6. द्रविणं (धन)
7. ब्रह्मवर्चस

पंचकोश परिष्कृत/ अनावरण/ जागरण से हमारा भौतिक व आत्मिक दोनों पक्ष शानदार होता है ।

गायत्री मंत्र के सार्वभौम प्रेरणा को हम keep smiling (हर हाल मस्त) रूपेण आत्मसात कर सकते हैं ।

मानव शरीर (पंचकोश) में चक्र उपचक्र/ शक्ति केन्द्र (मूलाधार to सहस्रार) को जाग्रत कर अन्य लोकों से संपर्क स्थापित किया जा सकता है ।
हमारा दृश्यमान शरीर (physical body) सबसे बाहरी आवरण (छिलका) मात्र है जिसकी शक्ति सीमित है इससे कहीं अधिक क्षमतावान सुक्ष्म व कारण शरीर हैं ।

(प्रज्ञोपनिषद्) परिवार निर्माण की पूर्णता वसुधैव कुटुंबकम् के रूप में होती है ।

मूलाधार (शक्ति – तप @ तन्त्र साधना) व सहस्रार (ज्ञान – योग साधना) दोनों के समन्वय (मिलन) से संयमित जीवन (ध्यान + धारणा + समाधि @ भक्ति) @ अखंडानंद संभव बन पड़ता है ।

शक्ति केन्द्रों के जागरण को कमल के पंखुड़ियों के अलंकारित चित्रण का संदेश है इससे उत्पन्न ऊर्जा/ शक्ति निष्काम (कल्याणकारी) होती हैं ।

कुण्डलिनी जागरण के ज्ञान विज्ञान को तन्त्र साधना के अंतर्गत रखा गया है ।

गायत्री साधना सर्वथा निरापद कल्याणकारी है जिसे सभी वर्णाश्रमी कर सकते हैं ।

योग विज्ञान एवं तन्त्र शास्त्र एक ही वृक्ष के दो शाखाएं हैं । ज्ञान व शक्ति के समन्वय से बात बनती है जिसके व्यवहारिक प्रयोगों को प्रज्ञोपनिषद् के तपोयोग प्रकरण से भी समझा जा सकता है ।

जिज्ञासा समाधान

सरसता (भक्ति), ज्ञान (योग) व शक्ति (तप) का समन्वयात्मक रूप है । एक पक्षीय साधना, ग्रन्थि (rudeness @ लोभ/ मोह/ अहंकार) का कारण बन सकती है । 
हम कल्याणकारी / उदार भक्ति भाव (unconditional love) से कुछ भी करें वो सरसता पूर्ण होगा ।
कल्याणकारी भाव के धारक बनने हेतु तपोयोग @ ‘उपासना + साधना + अराधना’ ।

Negative thoughts शरीर में toxins (विष तत्त्वों) के उत्पत्ति व अभिवृद्धि का कारक है । Positivity से आरोग्य धारण किया जा सकता है ।

आसक्ति/ चिपकाव – ‘मैं/ मेरा + तू/ तेरा’ के रूपांतरण (अनासक्त/ निष्काम/ आत्मीयता) हेतुहमारामंत्र (सोऽहं, तत्त्वमसि, अयं आत्मा ब्रह्म, सर्व खल्विदं ब्रह्म आदि) प्रभावी हैं ।

क्रियायोग के अभ्यास में सुविधा योग (नियमितता+ सहजता + सजगता + सकारात्मकता) का अनिवार्य रूप से ध्यान रखा जाए ।

कठोपनिषद् :-
नायमात्मा प्रवचनेन लभ्यो न मेधया न बहुना श्रुतेन । यमेवैष वृणुते तेन लभ्यस्तस्यैष आत्मा विवृणुते तनूं स्वाम्‌ ॥
उत्तिष्ठत जाग्रत प्राप्य वरान्निबोधत
क्षुरस्य धारा निशिता दुरत्यया दुर्गं पथस्तत्कवयो वदन्ति ॥
हम ‘श्रद्धा + प्रज्ञा + निष्ठा‘ युक्त होकर चरैवेति चरैवेति

आन्तरिक व बाह्य स्वच्छता को maintain कर खुजली (उद्विग्नता) से मुक्ति पाई जा सकती है ।

सादा जीवन – उच्च विचार । साथ ही साथ immunity ऐसी हो की अन्य गुण अथवा तत्त्व से elergy (राग – द्वेष) developed ना हो । समन्वय से बात बनती है ।

भाव (अनाहत) व शक्ति (मूलाधार) का मिलन (समन्वय @ आकुंचन – प्रकुंचन) को प्राणन – अपानन की क्रिया समझा जा सकता है ।

ॐ  शांतिः शांतिः शांतिः।।

सार-संक्षेपक: विष्णु आनन्द

 

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