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Yogakundalyupanishad – 1

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Gupt Navratri Sadhna Satra –  Online Global Class –  22 जनवरी 2023 (5:00 am to 06:30 am) –  Pragyakunj Sasaram _ प्रशिक्षक श्री लाल बिहारी सिंह

ॐ भूर्भुवः स्‍वः तत्‍सवितुर्वरेण्‍यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्‌

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Broadcasting: आ॰ अंकूर जी/ आ॰ अमन जी/ आ॰ नितिन जी

शिक्षक बैंच: आ॰ श्री लाल बिहारी सिंह जी

विषय: योगकुंडल्युपनिषद् – 1

Theory (अध्ययन + मनन) कोpractical (चिंतन – मंथन) में लाना आवश्यक है ।

एकांगी पक्ष हमें ‘परावलंबी‘ बनाता हैं । कुण्डलिनी जागरण हमें ‘स्वावलंबी‘ बनाता है । इसमें हमें ब्रह्म शक्ति के 3 टुकड़े @ स्थूल सृष्टि के मूल कारण:-
1. सत् (ईश्वर का दिव्य तत्त्व) @ ज्ञान @ ह्रीं (सरस्वती)
2. तम (निर्जीव पदार्थों मे परमाणु का अस्तित्व) @ शक्ति @ क्लीं (काली)
3. रज (जड़ पदार्थों व ईश्वरीय तत्त्वों के सम्मिश्रण से उत्पन्न हुई आनन्द दायक चेतना) @ साधन @ श्रीं (लक्ष्मी)
सत् व तम के योग से रज उत्पन्न हुआ और यह त्रिधा प्रकृति कहलाई ।
त्रिगुणात्मक समन्वयक शक्ति कुण्डलिनी जागरण है

प्रकृति के 2 भाग :-
1. सूक्ष्म प्रकृति – शक्ति प्रवाह के रूप में, प्राण संचार के रूप में कार्य करती है वह सत, रज व तममयी है ।
2. स्थूल प्रकृति – जिससे दृश्य पदार्थों का निर्माण व उपयोग होता है वह परमाणुमयी है ।

चित्त‘ की चंचलता के 2 कारण :-
1. वासना (पूर्वाजित संस्कार)
2. वायु (गतिशील/ धावमान प्राण)
एक के निरोध/ नियंत्रित/ संतुलित/ संयमित/ परिष्कृत/ विशुद्ध/ उज्जवल होने से दोनों संयमित हो जाते हैं
@ योगश्चित्तवृत्तिनिरोधः

सर्वप्रथम (गतिशील/ धावमान) वायु/प्राण पर विजय प्राप्त करनी चाहिए । प्राप्ति के 3 साधन/ अभ्यास:-
1. मिताहार
2. आसन
3. शक्तिचालिनी मुद्रा

मिताहार के लक्षण – ऋतभोक् + मितभोक् + हितभोक् ।”
आसन – 1. पद्मासन 2. वज्रासन ।
शक्तिचालिनी मुद्रा – मूलाधार कुण्डलिनी शक्ति को चालन क्रिया के द्वारा उर्ध्वगमन कर दोनों भृकुटियों के मध्य ले जाता है इसे शक्तिचालिनी कहते हैं ।

सरस्वती चालन – नाड़ीशोधन प्राणायाम के अभ्यास से सुषुम्ना में स्थित होना @ साक्षी भाव @ स्थित प्रज्ञ ।

प्राणायाम – (गतिशील/ धावमान) प्राणोंका निरोध/ नियंत्रण/ संयम करने की विधि

कुंभक – शरीर में संचरण करने वाली वायु @ प्राण को प्राणायाम द्वारा स्थिर किया जाता है तब उसे कुंभक कहते हैं । दो प्रकार:-
1. सहित – सूर्यभेदन,  उज्जायी,  शीतली व भस्रिका
2. केवल – सिद्धि @ साक्षी भाव

Theory में most common factors को लिखित रूप दिया जाता है, साहित्य ग्रन्थ आदि का प्रतिपादन होता है । 
गुरू के मार्गदर्शन में Practical में स्वयं की
– रूचि विश्वास (श्रद्धा)
– सहजता व सजगता (प्रज्ञा)
– नियमितता (निष्ठा) का ध्यान रखें ।
सिद्ध/ skilled होने के उपरांत application ….।

जिज्ञासा समाधान

आसन ~ स्थिर शरीर – शांत चित्त
पद्मासन – निर्लिप्त/ अनासक्त/ निष्काम भावेण …
वज्रासन – दृढ़ मनोभूमि @ निष्ठा … ।

संतुलित आहार (ऋतभोक् + मितभोक् + हितभोक्),  तितीक्षा, कर्षण व अर्जन तप का जीवन में समावेश कर fatness का रूपांतरण fitness में किया जा सकता है ।

प्राणायाम की सिद्धि – जब हम परिवर्तनशील जगत में अपरिवर्तनशील चैतन्य सत्ता @ महाप्राण से resonance (तादात्म्यता/ सायुज्यता) बनें ….. सर्व खल्विदं ब्रह्म ।

स्वयं को संवारें निखारें और अन्य व्यक्तित्वको को प्रतिभावान प्रखर बनाने में सहयोग करें …. सहयोगी बनावें

ॐ  शांतिः शांतिः शांतिः ।।

सार-संक्षेपक: विष्णु आनन्द

 

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