Yogakundalyupanishad – 6
Youtube link
Gupt Navratri Sadhna Satra (22 to 30 Jan 2023) – Online Global Class – 27 जनवरी 2023 (5:00 am to 06:30 am) – Pragyakunj Sasaram _ प्रशिक्षक श्री लाल बिहारी सिंह
ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात् ।
To Join Panchkosh sadhna Program, please visit – https://icdesworld.org/
Broadcasting: आ॰ अंकूर जी/ आ॰ अमन जी/ आ॰ नितिन जी
शिक्षक बैंच: आ॰ श्री लाल बिहारी सिंह जी
विषय: योगकुंडल्युपनिषद् – 6 (तृतीय अध्याय, मंत्र सं॰ 1 – 17)
आत्मानुसंधान – आत्मा वाऽरे ज्ञातव्यः … श्रोतव्यः …. द्रष्टव्यः…. ।
खेचरी का मेलन (योग) मंत्र (विचार/ परामर्श/ भाव) – ‘ह्रीं, भं, सं, मं, पं, सं, क्षं’ । साधक की दृष्टि व स्थिति:-
1. प्रकाश रहित अमावस्या (प्रारंभ में अबोध)
2. अल्प प्रकाश की प्रतिपदा (जिज्ञासु – मैं क्या हूँ? मैं क्यों हूँ? )
3. पूर्ण प्रकाश की पूर्णिमा (बोधत्व) ।
विषयासक्ति (वासना/ तृष्णा/ अहंता/ उद्विग्नता @ लोभ/ मोह/ अहंकार) सेमन को हटाकर कुण्डलिनी मध्य (सुष्मना) में मन को स्थिरकरआत्मस्थ रहना चाहिए ।
(साक्षी अनासक्त निष्काम) मन से (विषयासक्त) मन को देखते हुए उसकी गतिविधियों का निरीक्षण करते हुए उनसे मुक्त होने (समीक्षा + सुधार + निर्माण + विकास @ वयष्टि का समष्टि में @ जीव का शिव में @ ससीम का असीम में @ बिन्दु का सिन्धु में मेलन/ विलयन – विसर्जन) को ही परमपद कहा गया है ।
बिन्दु साधना – बिन्दु का साक्षात्कार व सिन्धु में विलयन विसर्जन एकत्व @ अद्वैत।
चक्र: कुण्डलिनी शक्ति के मूल तक पहुँचने के मार्ग में 6 फाटक/ ताले/ अवरोध को षट्चक्र की संज्ञा दी गई हैं । इन चक्रों का वेधन करके जीव कुण्डलिनी जाग्रत कर जीवन के उद्देश्य को पूर्ण कर सकता है ।
1. मूलाधार चक्र: स्थान – (योनि की सीध में) गुदा के समीप, वर्ण – लाल, लोक – भुःलोक, बीज – लं, तत्त्व – पृथ्वी, गुण – गंध, ज्ञानेन्द्रिय – नासिका, कर्मेन्द्रिय – गुदा ….. ।
2. स्वाधिष्ठान चक्र: स्थान – पेडू के सीध में (लिंग के समीप) वर्ण – सिंदुर, लोक – भुवः, बीज – वं, तत्त्व – जल, गुण – रस, ज्ञानेन्द्रिय – रसना/ जीभ, कर्मेन्द्रिय – लिंग ….. ।
3. मणिपुर चक्र: स्थान – नाभि के सीध में, वर्ण – नील, लोक – स्वः, बीज – रं, तत्त्व – अग्नि, गुण – रूप, ज्ञानेन्द्रिय – चक्षु/ आँख, कर्मेन्द्रिय – चरण/ पैर …।
4. अनाहत चक्र: स्थान – हृदय के सीध मे, वर्ण – अरूण, लोक – महः, बीज – यं, तत्त्व – वायु, गुण – स्पर्श, ज्ञानेन्द्रिय – त्वचा, कर्मेन्द्रिय – हाथ …।
5. विशुद्धि चक्र: स्थान – कण्ठमूल, वर्ण – धुम्र, लोक – जनः, बीज – हं, तत्त्व – आकाश, गुण – शब्द, ज्ञानेन्द्रिय – कर्ण/ कान, कर्मेन्द्रिय – मुख …।
6. आज्ञा चक्र: स्थान – भ्रुमध्य, वर्ण – श्वेत, लोक – तपः, बीज – ॐ, तत्त्व – महः …।
7. सहस्रार चक्र: स्थान – मस्तक, लोक – सत्य, बीज – : (विसर्ग), तत्त्वों से अतीत, प्रकाश – निराकार …।
समुचित रूप से चित्त, प्राण वायु, बिन्दु एवं चक्र का अभ्यास हो जाने पर योगियों को परमात्मा से एकाकार होकर समाधि अवस्था में पहुंचकर अमृत तत्त्व की प्राप्ति होती है ।
बिना निरंतर अभ्यास के योगविद्या का प्रकाश बाहर नहीं आ सकता ।
गुरुमुख होकर इस शरीररूपी घट का भेदन करने के उपरांत ही ब्रह्म रूपी प्रकाश तक पहुँच बनती है ।
‘आत्मा‘ के पंच आवरण – पंचकोश अनावरण/ परिष्कृत/ उज्जवल @ वासना/ तृष्णा/ अहंता/ उद्विग्नता/ भेदभाव भ्रम/ अज्ञान रूपी अंधकार का नाश/ रूपांतरण …. then आत्म प्रकाशमें बिन्दु का सिन्धु में विलयन विसर्जन एकत्व संभव बन पड़ता है ।
जिज्ञासा समाधान
PPT presentation: चक्रों के स्थान … Anatomy ।
स्थित प्रज्ञ – तत्त्वों को due respect + आत्मस्थित।
ॐ शांतिः शांतिः शांतिः।।
सार-संक्षेपक: विष्णु आनन्द
No Comments