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Yuganukul Tapascharaya

Yuganukul Tapascharaya

युगानुकुल तपश्चर्याएं

PANCHKOSH SADHNA – Online Global Class –  12 Nov 2022 (5:00 am to 06:30 am) –  Pragyakunj Sasaram _ प्रशिक्षक श्री लाल बिहारी सिंह

ॐ भूर्भुवः स्‍वः तत्‍सवितुर्वरेण्‍यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्‌

विषय: युगानुकुल तपश्चर्याएं (अन्नमयकोश)

Broadcasting: आ॰ अमन जी/ आ॰ अंकुर जी/ आ॰ नितिन जी

शिक्षक बैंच:-
1. आ॰ मीना शर्मा जी (नई दिल्ली)
2. आ॰ शरद निगम जी (चित्तौड़, राजस्थान)

(गायत्री महाविज्ञान तृतीय भाग) तपश्चर्या – http://literature.awgp.org/book/Super_Science_of_Gayatri/v10.8

पापनाशक और शक्तिवर्धक तपश्चर्याएं –  http://literature.awgp.org/book/Pap_nashak_Gayatri/v2.2

तप साधना द्वारा दिव्य शक्तियों का उद्भव –  http://literature.awgp.org/book/Gayatree_kee_panchakoshee_sadhana/v7.65

तपश्चर्याएं, अन्नमयकोश क्रियायोग अन्तर्गत रखी गई हैं । (तैत्तिरीयोपनिषद् की तृतीय बल्ली – भृगु बल्ली) तपसो ब्रह्म विजिज्ञासस्व तपो ब्रह्मेति” अर्थात् हे पुत्र! तू तप करके ब्रह्म को जानने का प्रयत्न कर, क्योंकि ब्रह्म को तप द्वारा ही जाना जाता है ।
तप‘ (संयम) से हमें वह शक्ति/ आत्मबल (नायमात्मा बलहीनेन लभ्यो न च प्रमादात्‌ तपसो वाप्यलिङ्गात्‌।) प्राप्त होती है जिससे आत्मा व परमात्मा का मिलन‌ @ ‘योग‘ संभव बन पड़ता है ।
युगानुकुल 12 तप:- किसी भी वर्णाश्रम के व्यक्तित्व युगानुकुल तपश्चर्याएं को दैनंदिन जीवन क्रम में अपनाकर यशस्वी (ओजस्वी + तेजस्वी + वर्चस्वी) बन सकते हैं । इनकी शुरूआत स्थूल शरीर संयम से होती है और पहूंच सुक्ष्म व कारण शरीर तक है अर्थात् इनसे हमारा physical body, mental body & emotional body तीनों शरीर स्वस्थ (परिष्कृत) होता है । अतः इसे पंचकोश अनावरण/ जागरण/ परिष्करण के प्रारंभ में रखा गया है कि ये प्रारंभ से अंत तक साथ निभाता है ।
तप से हमारा लौकिक (धरा को स्वर्ग बनाना) व आत्मिक (मैं आत्मा हूं,) जीवन दोनों शानदार बनाता है । वासना, तृष्णा, अहंता व उद्विग्नता शांत होती है ।

1. आस्वाद तप – (इन्द्रिय संयम) जिह्वा पर नियंत्रण । नमक व मीठा, दो स्वाद प्रधान वस्तुओं की आसक्ति से संयम । उपलब्धि – संतोष ।

2. तितीक्षा तप – सर्द और गर्म के कष्ट को सहने की आदत डालना अर्थात् मौसम के प्रभाव से स्वयं की मस्ती खंडित ना हो ।

3. कर्षण तप – शारीरिक सुविधाओं का आदि ना होना @ सादा जीवन उच्च विचार ।

4. उपवास तप – (इन्द्रिय संयम) जिह्वा पर नियंत्रण । ऋतभोक् + मितभोक् + हितभोक् + स्वाध्याय सत्संग ईश्वर प्राणिधान।

5. गव्य कल्प तप – (इन्द्रिय संयम) जिह्वा पर नियंत्रण । गौ उत्पाद को जीवन क्रम में शामिल करना ।

6. प्रदातव्य तप – वसुधैव कुटुंबकम् ।

7. निष्कासन तप – confessions/ sharing/ query session/ स्वाध्याय सत्संग ईश्वर प्राणिधान ।

8. साधना तप – क्रियायोग @ इन्द्रिय संयम + समय संयम + विचार संयम + अर्थ संयम ।

9. ब्रह्मचर्य तप – (इन्द्रिय संयम) कामबीज का रूपांतरण ज्ञानबीज में @ transmutation of sex energy. 

10. चान्द्रायण तप – 1 माह चन्द्र कलाओं के संग आहार विहार का संयम, स्वाध्याय, सत्संग, उपासना – साधना – अराधना ।

11. मौन तप – वाणी संयम । स्वाध्याय सत्संग ईश्वर प्राणिधान ।

12. अर्जन तप – स्वावलंबन । Trained & skilled. संसाधन शक्ति सामर्थ्य में अभिवृद्धि ।

तप‘ का उद्देश्य ‘प्राणवान’ बनना है अतः उद्देश्य को ध्यान में रखा जाए । अतिरेक से बचा जाए । सुविधा योग (श्रद्धा + नियमितता + सहजता + सजगता + सदुपयोग) का ध्यान रखा जाए तो लक्ष्य वरण अवश्यंभावी हो जाता है ‌।

जिज्ञासा समाधान (श्री लाल बिहारी सिंह ‘बाबूजी’ व शिक्षक बैंच)

आ॰ मीना जी, डा॰ लोकेश जी व आ॰ शरद जी को आज के विषय पर शानदार interpretation हेतु आभार ।

तप‘का उद्देश्य जन्म जन्मांतर के संचित कुसंस्कार अर्थात् अनगढ़ता को सुघड़ता में रूपांतरित करना होता है । Toxins को बाहर निकालना व प्राण का संवर्धन (गलाई + ढलाई) करनी होती है ।

विद्यालयों में प्राइमरी एजुकेशन में पंचकोश जागरण के पाठ्यक्रम को शामिल करना हर्ष का विषय ।

तप से हमारी immunity इतनी strong बन जाती है कि लक्ष्य प्राप्ति में आने वाली बाधाएं/ समस्याएं/ चुनौतियों/ संघर्ष हमारे लिए दुःख का विषय नहीं प्रत्युत् adventure का माध्यम बन जाती है ।

Demonstration of शीर्षासन

योगाभ्यास के दौरान बीच बीच में शिथिलीकरण हमें अगले अभ्यास हेतु recharge कर देता है ।

Peace & bliss (unconditional love) में अभिवृद्धि को हम प्रगति का parameter रख सकते हैं ।

क्रियायोग अभ्यास में अतिरेक (rigidness) से बचा जाए । सुविधा योग (श्रद्धा + प्रज्ञा + निष्ठा) का ध्यान रखा जाए ।

अनासक्त/ निष्काम जीवन अर्थात् सर्वथा कल्याण भावना को धारण कर सुषुम्ना का द्वार open किया जा सकता है ।

ॐ  शांतिः शांतिः शांतिः ।।

सार-संक्षेपक: विष्णु आनन्द

 

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