Spritual Science of Sex – 2
Aatmanusandhan – Online Global Class – 12 फरवरी 2023 (5:00 am to 06:30 am) – Pragyakunj Sasaram _ प्रशिक्षक श्री लाल बिहारी सिंह
ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात् ।
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Broadcasting: आ॰ अंकूर जी/ आ॰ अमन जी/ आ॰ नितिन जी
शिक्षक बैंच: आ॰ श्री लाल बिहारी सिंह जी
विषय: काम को मरण मात्र नही, अमृत बनाए (अध्यात्मिक काम विज्ञान)
काम ऊर्जा/ शक्ति को हम केवल आसक्तिवश वासनात्मक/ तृष्णात्मक/ अहंतापूर्ण गतिविधियों में ना लगावें प्रत्युत् इस पवित्र ईश्वरीय ऊर्जा @ कुण्डलिनी शक्ति के धारक हम ईश्वरांश, ईशानुशासन में ईश्वरीय कार्य (अखंडानंदात्मक गतिविधियों) में भी सुनियोजित करें ।
काम के अंतर्गत सभी प्रकार के आनन्दमयी (विषयानंद + अखंडानंद) गतिविधियां क्रीड़ा, हास्य विनोद, गीत, संगीत, नृत्य, प्रीति प्यार, अनुराग, स्नेह, शिष्टता, प्रजनन, पोषण, संवर्धन, परिवर्तन @ ज्ञान/ कर्म/ भक्ति आदि ।
जीवः शिवः शिवो जीवः स जीवः केवलः शिवः । तुषेण बद्धो व्रीहिः स्यात् तुषाभावेन तण्डुलः ॥ भावार्थ: जीव ही शिव है और शिव ही जीव है । वह जीव विशुद्ध शिव ही है। जीव-शिव उसी प्रकार है, जैसे धान का छिलका लगे रहने पर व्रीहि और छिलका दूर हो जाने पर उसे चावल कहा जाता है।
जीव ही शिव है के बोधत्व (अनावरण/ परिष्करण/ आत्म – परमात्म साक्षात्कार) की यात्रा में पवित्र कुण्डलिनी/ काम शक्ति का सुनियोजन/ जागरण की आवश्यकता है ।
वैतरणी – जीव शरीर, हिंसात्मक जंतु – षट् उर्मि, षट् भ्रम आदि, मवाद – शरीर भावेण वासनात्मक/ तृष्णात्मक/ अहंतापूर्ण किए गये कार्य के परिणाम, गाय की पूंछ – ज्ञानेन मुक्ति … ।
गुरूकुल से educated & skilled होने के उपरांत पात्रतानुसार job/ faculty में प्रवेश करते हैं ।
उसके बाद life partner के चुनाव में केवल बाह्य सौंदर्य रूप लावण्य को ही तरजीह ना देवें प्रत्युत् आंतरिक सौंदर्य @ “सत्य – विवेक, संयम – कर्तव्य पालन अनुशासन – अनुबंध, स्नेह सौजन्य – पराक्रम, सहकार – परमार्थ” आदि का ध्यान रखें ।
Healthymarried life & child production के लिए spritual science of sex को जानना समझना व जीना आवश्यक है ।
य एष सुप्तेषु जागर्ति कामं कामं पुरुषो निर्मिमाणः । तदेव शुक्रं तद् ब्रह्म तदेवामृतमुच्यते । तस्मिंल्लोकाः श्रिताः सर्वे तदु नात्येति कश्चन । एतद्वै तत् ॥
”यह ‘पुरुष‘ जो नानाविध कामनाओं की सृष्टि करते हुए सोते हुओं में जागता रहता है, ‘वही’ ‘ज्योतिर्मय पुरुष‘, ‘वही’ ‘ब्रह्म‘, ‘वही’ ‘अमृतत्व‘ कहलाता है । ‘उसमें’ ही समस्त लोक-लोकान्तर आश्रित हैं; कोई भी ‘उससे’ परे नहीं जाता । यही है ‘वह’ जिसकी तुम्हें अभीप्सा है ।
जिज्ञासा समाधान
शक्ति पवित्र है; user – good or bad हो सकते है । सदुपयोग से बात बनती है दुरूपयोग से बिगड़ती है ।
काम ऊर्जा के सदुपयोग में APMB + सादा जीवन – उच्च विचार प्रभावी हैं ।
संभोग से समाधि की ओर अर्थात् काम बीज का ज्ञान बीज में रूपांतरण ।
सायुज्यता अविनाशी परिवर्तनशील सत्ता से बनती है । मन को शांत रखने हेतु ‘मैत्री, करूणा, मुदिता व प्रशंसा‘ प्रभावी हैं ।
मैत्री में unconditional love होता है ।
ॐ शांतिः शांतिः शांतिः।।
सार-संक्षेपक: विष्णु आनन्द
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