Pragyakunj, Sasaram, BR-821113, India
panchkosh.yoga[At]gmail.com

Spritual Science of Sex – 2

Spritual Science of Sex – 2

काम को मरण मात्र नही, अमृत बनाए

Aatmanusandhan –  Online Global Class –  12 फरवरी 2023 (5:00 am to 06:30 am) –  Pragyakunj Sasaram _ प्रशिक्षक श्री लाल बिहारी सिंह

ॐ भूर्भुवः स्‍वः तत्‍सवितुर्वरेण्‍यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्‌

To Join Panchkosh sadhna Program, please visit – https://icdesworld.org/

Broadcasting: आ॰ अंकूर जी/ आ॰ अमन जी/ आ॰ नितिन जी

शिक्षक बैंच: आ॰ श्री लाल बिहारी सिंह जी

विषय: काम को मरण मात्र नही, अमृत बनाए (अध्यात्मिक काम विज्ञान)

काम ऊर्जा/ शक्ति को हम केवल आसक्तिवश वासनात्मक/ तृष्णात्मक/ अहंतापूर्ण गतिविधियों में ना लगावें प्रत्युत् इस पवित्र ईश्वरीय ऊर्जा @ कुण्डलिनी शक्ति के धारक हम ईश्वरांश, ईशानुशासन में ईश्वरीय कार्य (अखंडानंदात्मक गतिविधियों) में भी सुनियोजित करें  ।

काम के अंतर्गत सभी प्रकार के आनन्दमयी (विषयानंद + अखंडानंद) गतिविधियां क्रीड़ा, हास्य विनोद, गीत, संगीत, नृत्य, प्रीति प्यार, अनुराग, स्नेह, शिष्टता, प्रजनन, पोषण,  संवर्धन, परिवर्तन @ ज्ञान/ कर्म/ भक्ति आदि ।

जीवः शिवः शिवो जीवः स जीवः केवलः शिवःतुषेण बद्धो व्रीहिः स्यात् तुषाभावेन तण्डुलः ॥ भावार्थ: जीव ही शिव है और शिव ही जीव है । वह जीव विशुद्ध शिव ही है। जीव-शिव उसी प्रकार है, जैसे धान का छिलका लगे रहने पर व्रीहि और छिलका दूर हो जाने पर उसे चावल कहा जाता है।
जीव ही शिव है के बोधत्व  (अनावरण/ परिष्करण/ आत्म – परमात्म साक्षात्कार) की यात्रा में पवित्र कुण्डलिनी/ काम शक्ति का सुनियोजन/ जागरण की आवश्यकता है ।

वैतरणी – जीव शरीर, हिंसात्मक जंतु – षट् उर्मि, षट् भ्रम आदि, मवाद – शरीर भावेण वासनात्मक/ तृष्णात्मक/ अहंतापूर्ण किए गये कार्य के परिणाम,  गाय की पूंछ – ज्ञानेन मुक्ति … ।

गुरूकुल से educated & skilled होने के उपरांत पात्रतानुसार job/ faculty में प्रवेश करते हैं ।
उसके बाद life partner के चुनाव में केवल बाह्य सौंदर्य रूप लावण्य को ही तरजीह ना देवें प्रत्युत् आंतरिक सौंदर्य @ “सत्य – विवेक, संयम – कर्तव्य पालन अनुशासन – अनुबंध,  स्नेह सौजन्य – पराक्रम,  सहकार – परमार्थ” आदि का ध्यान रखें ।
Healthymarried life & child production के लिए spritual science of sex को जानना समझना व जीना आवश्यक है ।

य एष सुप्तेषु जागर्ति कामं कामं पुरुषो निर्मिमाणः । तदेव शुक्रं तद् ब्रह्म तदेवामृतमुच्यते । तस्मिंल्लोकाः श्रिताः सर्वे तदु नात्येति कश्चन । एतद्वै तत्‌ ॥
”यह ‘पुरुष‘ जो नानाविध कामनाओं की सृष्टि करते हुए सोते हुओं में जागता रहता है, ‘वही’ ‘ज्योतिर्मय पुरुष‘, ‘वही’ ‘ब्रह्म‘, ‘वही’ ‘अमृतत्व‘ कहलाता है । ‘उसमें’ ही समस्त लोक-लोकान्तर आश्रित हैं; कोई भी ‘उससे’ परे नहीं जाता । यही है ‘वह’ जिसकी तुम्हें अभीप्सा है ।

जिज्ञासा समाधान

शक्ति पवित्र है; user – good or bad हो सकते है । सदुपयोग से बात बनती है दुरूपयोग से बिगड़ती है ।
काम ऊर्जा के सदुपयोग में APMB + सादा जीवन – उच्च विचार प्रभावी हैं ।

संभोग से समाधि की ओर अर्थात् काम बीज का ज्ञान बीज में रूपांतरण ।

सायुज्यता अविनाशी परिवर्तनशील सत्ता से बनती है । मन को शांत रखने हेतु ‘मैत्री, करूणा, मुदिता व प्रशंसा‘ प्रभावी हैं ।

मैत्री में unconditional love होता है ।

ॐ  शांतिः शांतिः शांतिः।।

सार-संक्षेपक: विष्णु आनन्द

 

No Comments

Add your comment