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Sarswati Rahashyopnishad-2

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Gupt Navratri Sadhna Satra (22 to 30 Jan 2023) –  Online Global Class –  30 जनवरी 2023 (5:00 am to 06:30 am) –  Pragyakunj Sasaram _ प्रशिक्षक श्री लाल बिहारी सिंह

ॐ भूर्भुवः स्‍वः तत्‍सवितुर्वरेण्‍यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्‌

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Broadcasting: आ॰ अंकूर जी/ आ॰ अमन जी/ आ॰ नितिन जी

शिक्षक बैंच: आ॰ श्री लाल बिहारी सिंह जी

विषय: सरस्वती रहस्योपनिषद्-2 (मंत्र सं॰ 36 – 68)

आज गुप्त नवरात्रि साधना की पूर्णाहुति

36 – 42 मंत्र में माता सरस्वती की नमन वन्दन स्तुति । जिस व्यक्तित्व को कवित्व,  भोग, निर्भयता एवं मुक्ति की आकांक्षा हो, वह इन 10 मंत्रों से युक्त माता सरस्वती की भक्तियोग से नित्य स्तुति करें

43 – 48 मंत्र में हितकारी कल्याणप्रद ज्ञान की देवी माता सरस्वती की नित्य स्तुति (उपासना + साधना + अराधना) से लाभ:
– बैखरी वाणी अद्वितीय,  प्रमेय रहित, गद्य पद्य युक्त शब्दों का सरस रूप ले लेती है ।
– सहज वैदिक आर्ष ग्रन्थों के अभिप्राय को मनन चिंतन मनन मंथन निदिध्यासन करने में समर्थ ।
प्रकृति के तीन गुण:-
1. सत् (ह्रीं) – ईश्वर का दिव्य तत्त्व – आत्मिक आनंद का स्रोत
2. रज (श्रीं) – जड़ पदार्थ व ईश्वरीय दिव्य तत्त्व के सम्मिश्रण से उत्पन्न हुई आनंददायक चैतन्यता – मानसिक आनंद का स्रोत
3. तम् (क्लीं) – निर्जीव पदार्थ में परमाणु का अस्तित्व – सांसारिक आनंद का स्रोत
इन तीनों का योग से ही जीवत्व (मन बुद्धि चित्त व अहंकार के उपर आधारित) प्राप्त होता है ।

तत्कर्म यन्न बन्धाय सा विद्या या विमुक्तये । आयासायापरं कर्म विद्यान्या शिल्पनैपुणम् ॥ भावार्थ: कर्म वही है जो बन्धन का कारण नहो और विद्या भी वही है जो मुक्ति की साधिका हो । इसके अतिरिक्त और कर्म तो परिश्रमरुप तथा अन्य विद्याएँ कला-कौशलमात्र ही हैं ॥

शुद्ध सत्त्वगुण की प्रधानता से युक्त प्रकृति – देवी महामाया । इनकी 2 शक्तियां:-
1. विक्षेप शक्ति – पिण्ड से लेकर ब्रह्माण्ड तक की रचना करती है ।
2. आवरण (अपरा) शक्ति/ अविद्या – जो अन्तर्जगत में में ब्रह्म एवं सृष्टि के कारण भेद को आवृत करती है; जो कि सांसारिक बन्धनों का मुख्य कारण है ।

ईश्वरांश/ चैतन्य तत्व का प्रतिबिंब/ साक्षी जब कारण रूपी प्रकृति में समाहित होता है, तब दृश्य जगत में कार्य करने वाला जीव प्रादुर्भूत होता है ।

आवरण शक्ति के विनिष्ट अर्थात् पंचकोश अनावृत/ परिष्कृत/ उज्जवल होते ही बोधत्व

समाधि के 2 प्रकार:-
1. सविकल्प/ संप्रज्ञात/ सबीज/ सगुण समाधि – (क) दृश्यानुविद्ध (ख) शब्दानुविद्ध
2. निर्विकल्प/ असंप्रज्ञात/ निर्बीज/ निर्गुण समाधि – निर्लिप्त निर्विकार

देहाभिमान समाप्त होने के उपरांत परमात्म ज्ञान प्रकट होता है । जो भी मुझमें त्रैत (ईश्वर, प्रकृति व जीव) व द्वैत (जीवत्व व ईश्वरत्व) के भेद कल्पित हैं, वे यथार्थ नहीं हैं । ऐसा जो बोधत्व कर लेता है वह व्यक्तित्व मुक्त है (अद्वैत) ।

जिज्ञासा समाधान

आत्म-स्मृति – मैं आत्मा हूँ शरीर मेरा वाहन है । आत्मविस्मृत – मैं शरीर हूँ ।

संसार में दुःख के 3 कारण:-
1. अज्ञान –   ह्रीं शक्ति से विनिष्ट,
2. अशक्ति – क्लीं शक्ति से विनिष्ट,
3. अभाव – श्रीं शक्ति से विनिष्ट होती हैं  ।
सत्, रज व तम् प्रकृति की 3 गुण शक्ति धाराएं हैं तीनों को due respect देते हुए प्रगति क्रम बनाए रखें ।

ज्ञान केंद्र को हितकर/ कल्याणप्रद मानें @ हम परंपराओं के जगह विवेक को महत्व दें @ अंधानुकरण से बचें । कल्याणप्रद मंत्र –

तत्त्ववित्तु महाबाहो गुणकर्मविभागयोः ।  गुणा गुणेषु वर्तन्त इति मत्वा न सज्जते ।।

प्रकृति के आवरण शक्ति से अनावृत होने के उपरांत क्रिया की प्रतिक्रिया नहीं होती @ अभेद दर्शनं ज्ञानं

ॐ  शांतिः शांतिः शांतिः।।

सार-संक्षेपक: विष्णु आनन्द

 

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