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Spiritual Science of Sex

Spiritual Science of Sex

Aatmanusandhan –  Online Global Class –  05 फरवरी 2023 (5:00 am to 06:30 am) –  Pragyakunj Sasaram _ प्रशिक्षक श्री लाल बिहारी सिंह

ॐ भूर्भुवः स्‍वः तत्‍सवितुर्वरेण्‍यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्‌

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Broadcasting: आ॰ अंकूर जी/ आ॰ अमन जी/ आ॰ नितिन जी

शिक्षक बैंच: आ॰ श्री लाल बिहारी सिंह जी

विषय: नर नारी का मिलन एक असामान्य प्रक्रिया

आत्मा कुल वर्ण आश्रम लिंग भेद आदि से परे है ।

परब्रह्म परमात्मा – निरपेक्ष सनातन सत्य, प्रकृति – सापेक्ष सत्य ।

व्यवहारिक जगत का लोकाचार, सापेक्षसत्य के आधार पर किया जाता है ।

आत्मिक जगत का आत्मानुसंधान, निरपेक्ष सनातन सत्य के आधार पर किया जाता है ।

शिव (पुरूष) और शक्ति (प्रकृति) दोनों  श्रेष्ठ हैं । व्यवहारिक जगत में जहां कल्याण हेतु जिनकी प्राथमिकता है वहां उन्हें सापेक्षतः due respect दिया जाता है ।

अध्यात्मिक काम विज्ञान –  जीव (ईश्वरांश) कल्याण भावेण (आत्मकल्याणाय + लोककल्याणाय + वातावरण परिष्काराय) अर्द्धनारीश्वर दर्शन को आत्मसात करे ।

नर नारी परमात्म शक्ति के साकार स्वरूप हैं । दोनों का सृजन सृष्टि के सुसांचलन में माध्यम हेतु है । अतः दोनों का विकास आवश्यक ही नहीं अनिवार्य भी है । ये युग्म है …. मिलन योग है

(प्रज्ञोपनिषद) युग्म:-
1. सत्यविवेक
2. संयमकर्तव्य-पालन
3. अनुशासनअनुबंध
4. स्नेह सौजन्यपराक्रम
5. सहकारपरमार्थ

(गायत्री उपनिषद्) युग्म – दो योनि एक मिथुन @ सविता व सावित्री का अविच्छिन्न संबंध है, जो एक है वही दूसरा है । दोनों मिलकर एक युग्म बनता है – एक केंद्र है, दूसरा उसकी शक्ति:-
1. मन सविता – वाक् गायत्री ।
2. अग्नि सविता – पृथ्वी सावित्री ।
3. वायु सविता – अन्तरिक्ष सावित्री ।
4. आदित्य सविता – द्यौ सावित्री ।
5. चन्द्रमा सविता – नक्षत्र सावित्री ।
6. दिन सविता – रात्रि सावित्री ।
7. उष्ण सविता – शीत सावित्री ।
8. बादल सविता – वर्षण सावित्री ।
9. विद्युत सविता – तड़क सावित्री ।
10. प्राण सविता – अन्न सावित्री ।
11. वेद सविता – छन्द सावित्री ।
12. यज्ञ सविता – दक्षिणा सावित्री ।

मस्तिष्क (सहस्रार) के बाद जननेंद्रिय (मूलाधार) का स्थान है :-
1. उत्तरी ध्रुव (सहस्रार केंद्र) – जीवन की चेतनात्मक,  बौद्धिक एवं भावनात्मक हलचलों का केंद्र मस्तिष्क …।
2. दक्षिणी ध्रुव (मूलाधार शक्ति) – उत्तम आकर्षण शक्ति जननेंद्रिय मूल में …।

नर – नारी का सामान्य मिलन जितना उपयोगी है उतना ही वासनात्मक संपर्क से खतरा भी है । दोनों का स्वरूप और महत्व अलग अलग है । प्रतिबंध, व्यक्तित्व सान्निध्य का नहीं प्रत्युत यौन शोषण का किया जाना चाहिए ।

मूलाधार चक्र (जननेंद्रिय केंद्र) में अद्भुत विद्युत धाराएं प्रवाहित होती हैं । उन्हें उर्ध्वगामी बनाकर हम ओजस् तेजस् वर्चस् में अभिवृद्धि कर सकते हैं ।

शिव, शक्ति के बिना शव के सामान हैं

जिज्ञासा समाधान

ब्रह्मचर्य के संधान में तन्मात्रा साधना को प्राथमिकता दी जाए । अध्यात्मिक काम विज्ञान  मनोमयकोश व विज्ञानमयकोश के परिष्कार हेतु है ।

अध्यात्मिक काम विज्ञान – युग की आवश्यकता ही नहीं अनिवार्यता भी ।

अध्यात्मिक काम विज्ञान को academic education में शामिल करने की आवश्यकता है । और इसके professor वो हो सकते हैं जिन्होंने पवित्र काम भावना के धारक हों ।

काम ऊर्जा का रूपांतरण (transmutation of sex energy) से हम श्रमिक, धनिक, सत्तावान, बहादुर, समझदार, ईमानदार, जिम्मेदार,  विद्वान,  तपस्वी, तत्वदर्शी, संत, सुधारक व शहीद की भूमिका में रह सकते हैं ।

सुसंतति के माध्यम तपस्वी माता पिता होते हैं । गृहस्थ आश्रम इसकी प्रयोगशाला है । अध्यात्मिक काम ज्ञान विज्ञान के appproach,  digestion & application से जीवन के उच्चतम लक्ष्य संधान किया जा सकता है ।

ॐ  शांतिः शांतिः शांतिः।।

सार-संक्षेपक: विष्णु आनन्द

 

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