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Yogakundalyupanishad – 4

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Gupt Navratri Sadhna Satra (22 to 30 Jan 2023) –  Online Global Class –  25 जनवरी 2023(5:00 am to 06:30 am) –  Pragyakunj Sasaram _ प्रशिक्षक श्री लाल बिहारी सिंह

ॐ भूर्भुवः स्‍वः तत्‍सवितुर्वरेण्‍यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्‌

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Broadcasting: आ॰ अंकूर जी/ आ॰ अमन जी/ आ॰ नितिन जी

शिक्षक बैंच: आ॰ श्री लाल बिहारी सिंह जी

विषय: योगकुंडल्युपनिषद् – 4 (द्वितीय अध्याय, मंत्र सं॰ 1 – 27)

प्रथम अध्याय में:
– चित्त के चंचलता के 2 कारण ~  वासना व धावमान प्राण
– प्राण संयम हेतु 3 साधन ~ मिताहार,  आसन व शक्तिचालिनी मुद्रा का अभ्यास
– प्राणायाम द्वारा सुषुम्ना (साक्षी भाव) में प्रवेश …
तीन बन्ध युक्त प्राणायाम अभ्यास द्वारा प्राण का निरोध/ संयम/ उर्ध्वगमन ….
ग्रन्थि भेदन द्वारा शक्ति शिव का मिलन … ।

द्वितीय अध्याय

महामुद्रामहाबन्धोमहावेधश्च खेचरीउड्डीयानंमूलबन्धस्ततो जालंधराभिधः ।। करणी-विपरीताख्या वज्रोली शक्तिचालनम् । इदं हि मुद्रा दशकंजरामरणनाशनम् ।।

व्यक्ति को अजर अमर बनाने वाली विद्या/ मुद्रा – खेचरी विद्या ।
जरा, मृत्यु व रोगों से ग्रसित व्यक्ति दृढ़संकल्प करके खेचरी मुद्रा की साधना (अभ्यास + मेलन/ योग) करे ।
गुरू के सान्निध्य में श्रद्धा, प्रज्ञा व निष्ठा संग खेचरी मुद्रा का योगाभ्यास करें ।
खेचरी – चिदाकाश में विचरण करना ।
बीज मंत्र – ह्रीं, भं, सं, मं, पं, सं क्षं ।

ह्रीं मंत्र :-
‘- समस्त वांग्मय स्वरूप व निर्मल …
‘ – वाणी को प्रांजलता प्रदान करने वाला व निर्मल …
‘ – अग्नि (ताप शक्ति)
अनुस्वार/ बिन्दू’ – जल @ रसो वै सः …
………..  भं, सं, मं, पं, संक्षं के अभ्यास/ साधना मेलन  हेतु अक्षमालिकोपनिषद् का स्वाध्याय सहयोगी

मेलन/ योगगुरूके मार्गदर्शन (कृपा) में योगाभ्यास/ साधना की Theory (विद्या) से approach कर (मनन), Practical के process से गुजर कर digested (चिंतन – मंथन – समर्थ चक्रवात) then Application से realised (मिलन – विलयन – एकत्व @ अद्वैत) ।

योगाभ्यास के 10 विघ्नों को ध्यान में रखते हुए समाधान – परमात्म प्रदत्त त्रिपदा शक्ति ‘श्रद्धा + प्रज्ञा + निष्ठा‘ संग ‘उपासना, साधनाअराधना‘ अभ्यास जारी रहे … चरैवेति चरैवेति @  हम होंगे कामयाब एक दिन …. मन में है विश्वास …. पुरा है विश्वास… @ समर्पण – विलयन – विसर्जन – एकत्व

जिज्ञासा समाधान

मुद्रा अभ्यास :-
1. स्थूल शरीर हेतु शक्तिचालिनीवज्रोली
2. सुक्ष्म शरीर हेतु महामुद्रा, मूलबंध, उड्डीयान बंध, जालंधर बंध, महाबंध, महावेध, व विपरीत  करणी
3. कारण शरीर हेतु खेचरी मुद्रा

प्रसवन भाव में प्रकाश से समस्त सृष्टि की उत्पत्ति व प्रतिप्रसवन भाव में पृथ्वी में जल, जल में त्रय अग्नि, अग्नि में वायु, वायु में आकाश, आकाश में बिन्दु finally बिन्दु का सिन्धु में विलयन – विसर्जन – एकत्व

कुंभक के दौरान अश्वनी मुद्रा का सहज सजग भाव युक्त अभ्यास (मेलन/ योग) करें ।

(Angle of vision) दृष्टिकोण – परिष्कृत हो जाए (विशुद्ध चित्त) – कमाल हो जाए… इस आकाश में ही आत्म – परमात्म दर्शन संभव बन पड़ता है @ रूपांतरण – नजरिए को बदलने से नजारे बदल जाते हैं @ मनःस्थिति बदलें तो परिस्थिति बदलें ।

मंत्र अर्थात् परामर्श/ सलाह/ सूत्र जो मेलन – समीक्षा – सुधार – निर्माण – प्रगति/ योग में सहयोग करें उसे मेलन मंत्र कहते हैं ।

ॐ  शांतिः शांतिः शांतिः।।

सार-संक्षेपक: विष्णु आनन्द

 

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