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Yogakundalyupanishad – 7

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Gupt Navratri Sadhna Satra (22 to 30 Jan 2023) –  Online Global Class –  28 जनवरी 2023 (5:00 am to 06:30 am) –  Pragyakunj Sasaram _ प्रशिक्षक श्री लाल बिहारी सिंह

ॐ भूर्भुवः स्‍वः तत्‍सवितुर्वरेण्‍यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्‌

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Broadcasting: आ॰ अंकूर जी/ आ॰ अमन जी/ आ॰ नितिन जी

शिक्षक बैंच: आ॰ श्री लाल बिहारी सिंह जी

विषय: योगकुंडल्युपनिषद् – 7 (तृतीय अध्याय, मंत्र सं॰ 18 – 35)

गायत्री महामंत्र (सार्वभौम सलाह/ universal guidance/ motivation) के ‘तत्‘ का मार्गदर्शन/ प्रेरणा/ संदेश – “तत्त्वदर्शी विद्वान ब्राह्मण अपने एकत्रित तप के द्वारा संसार से अज्ञान द्वारा उत्पन्न अन्धकार को दूर करें ।”
ब्राह्मण – जिसकी आत्मा, जितने अंशो में तत्त्वदर्शी, विद्वान और तपस्वी है वह उतने ही अंशों में ब्राह्मण है । ब्राह्मणत्व के व्यवहारिक लक्षण:-
1. उत्कृष्ट चिंतन (उपासक)
2. आदर्श चरित्र (साधक)
3. शालीन व्यवहार (अराधक)
यह ब्राह्मणत्व जिसकिसी वर्ण कुल वंश (faculty) व आश्रम (age group) के मनुष्य में निवास करता है उसका यह कर्तव्य धर्म है कि अज्ञान से उत्पन्न अंधकार (आस्था संकट + अचिन्त्य चिंतन + अयोग्य आचरण) को दूर करने के लिए जो कुछ कर सकता है अवश्य करे

स्वाध्याय अर्थात् universal truth:
theory से self approach (अध्ययन मनन) @ ज्ञानयोग
practical for digestion (चिंतन मंथन) @ कर्मयोग
application for realisation (विलयन विसर्जन एकत्व अद्वैत) @ भक्तियोग

तप/ संयम:-
1. इन्द्रिय संयम
2. विचार संयम
3. समय संयम
4. अर्थ संयम

वाणी:-
1. परा/ संकल्प – यह आकांक्षा, इच्छा, निश्चय,  प्रेरणा, शाप, वरदान आदि के रूप में अंतःकरण से निकलती है ।
2. पश्यन्ति/ विचार – जो मन से निकलती है और मन ही उसे सुन सकता है ।
3. मध्यमा/ भाव – जो संकेतों से, मुखाकृति से, भाव भंगिमा से नेत्रों से कही जाती है ।
4. बैखरी/ शब्द – जो मूंह से बोली जाती है और कानों से सुनी जाती है ।
यह चारो ही वाणियां आकाश में तरंग रूप में प्रवाहित होती हैं । जो व्यक्ति जितना प्रभावशाली (चरित्र, चिंतन एवं व्यवहार के धनी)  है उसके शब्द, भाव, विचार व संकल्प आकाश में उतने ही प्रबल होकर प्रवाहित होते हैं ।

हमारे स्वनिर्मित विचारों में एक मौलिक चुंबकत्व होता है जो आकाश से स्वधर्मी विचारों को खींचता है । अतः मन में सदा उत्तम,  उच्च, उदार व सात्विक विचारों को ही स्थान देना चाहिए – उत्कृष्ट चिंतन
परा वाणी संकल्प कभी नष्ट नहीं होते । हमारे पूर्वज ऋषि – मुनियों, महापुरूषों के जो विचार, प्रवचन व संकल्प थे वे अब भी आकाश में गूँज रहे हैं, यदि हमारी मनोभूमि अनुकूल (उर्वर) हो तो उन दिव्य आत्माओं का का पथ प्रदर्शन एवं सहारा अवश्य प्राप्त होगा ।
परब्रह्म की ब्राह्मी प्रेरणाएं,  शक्तियां, किरणें व तरंगे आकाश तत्त्व के द्वारा ही मानव अन्तःकरण को प्राप्त होती है ।

जो मनुष्य जैसा सोचता है वैसा ही करता है और जैसा करता है वैसा ही बन जाता है । अतः साधक को अपना मनःक्षेत्र ऐसा शुद्ध, परिमार्जित, स्वस्थ एवं सचेत रखना चाहिए जिससे त्रिपदा गायत्रीका अवतरण (चिंतन – उत्कृष्ट,  चरित्र – आदर्श व व्यवहार – शालीन @ ज्ञान + कर्म + भक्ति) सहजतापूर्ण हो ।

जो आदि – अंत रहित, नित्य, अव्यय और महान् है तथा जो अटल है एवं तन्मात्रा आदि पंचमहाभूतों से रहित है वही विकार रहित परमपवित्र ब्रह्म ही अन्त में शेष बचता है, यही उपनिषद् है ।

जिज्ञासा समाधान

बिन्दु अर्थात् आत्म परमात्म केन्द्र बिन्दु; साधना –  लघुत्तम महत्तम में आत्म परमात्म दर्शन।  शांत चित्त में ही आत्मा के प्रकाश में आत्मा का अनावरण होता है अर्थात् बिन्दु प्रकट होता है ।

आत्मानुभूति योग – Demonstration.

पदार्थ वादी (विषयासक्त) विचार – बंधन बन सकते हैं । मुक्ति – आत्मसत्ता का पदार्थ जगत पर नियंत्रण हो । बंधनकारी विचार को मुक्तिदायिनी विचारों से काट दें @ अहरह स्वाध्याय ।

Theory में अंतःकरण involve होता है practical & application में शरीर involved so शरीर को भगवान का मंदिर मानकर आत्मसंयम और नियमितता के द्वारा इसकी रक्षा करेंगे ।
आँख बंद (अन्तर्जगत): यत् ब्राह्मण्डे तत् पिण्डे @ अहं ब्रह्मस्मि + तत्त्वमसि = सोऽहं …. ।
आँख खोलें (ईश्वर का साकार रूप संसार) = सर्व खल्विदं ब्रह्म ।

ॐ  शांतिः शांतिः शांतिः।।

सार-संक्षेपक: विष्णु आनन्द

 

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